अपने टीनएज बच्चों की एंग्जायटी से सावधानी से करें डील, अपनाएं ये तरीका

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एक माता – पिता अपने बच्चे के लिए हमेशा अच्छा ही चाहेंगे लेकिन चीजें असल में देखी जाएँ तो आसान नहीं हैं। एक पैरेंट को हमेशा अपने बच्चें की फिकर सताती है कि वो ठीक है या नहीं। पुराने समय में माँ की चप्पल और पापा की लाल आँखे ही काफ़ी होती थी संस्कार भरने के लिए, लेकिन आज समय बदल चुका है। आज माता- पिता प्यार से समझाएं या गुस्से से, बच्चों को बुरा लगता ही लगता है।

किशोरावस्था वह जीवन का वह नाज़ुक मोड़ होता है जब भटकने के मौक़े सबसे अधिक होते हैं। बच्चे जब छोटे होते हैं तो वो अपने पैरेंट्स से हर बात शेयर करते हैं लेकिन जैसे टीनएज आता है और प्युबरटी हिट करती है तबसे बच्चें अपने शरीर में बदलाव और अन्य कई तरह के चीजों से गुजरते हैं। एक बच्चें में एंग्जाइटी आम बात है लेकिन अगर ये बढ़ जाए तो गंभीर हैं। एक टीनएज बच्चा अक्सर अपने फोन में बिज़ी रहता है और सोशल मीडिया के कारण तो बच्चों के हाथ में 24 घंटे फोन रहता ही है। जिस कारण बच्चें खुद की जिंदगी को दूसरों के साथ हमेशा तुलना करते है जिसके कारण वो इंसेक्योर फील करते हैं और खुद को कम आंकते हैं जिससे एंग्जाइटी जैसी दिक्कतें उन्हें होती रहती हैं। एक पैरेंट होते हुए आप अपने बच्चों को कुछ इस तरह से एंग्जाइटी से डील करना सिखा सकते हैं।

पैरेंट अपने बच्चों को एंग्जाइटी के लिए कुछ इस तरह से कर सकते हैं गाइड

● अपने बच्चों को समझाए और उन्हें इसका एहसास दिलाएं कि आप उन्हें समझ रहें हैं उनकी केयर कर रहे हैं। उनको हर बात पर मनोबल बढ़ाएं और उनको अपने होने का एहसास दिलाएं।
● आप अपने बच्चों को प्यार करें,उनकी चिंता जरूर करें लेकिन उनको कंट्रोल ना करें। अगर आप ज्यादा कंट्रोल करेंगे तो वो आपसे अधिक चीजें छुपाने लगेंगे और खुद में ही घुटते रहेंगे।
● अपने बच्चों को हालात से उभरना सिखाएं।  उनकी एंग्जाइटी को अगर आप इग्नोर करेगें तो ये बुरा हो सकता है।
● अपने बच्चें को प्रेरित करते रहें और जब भी वो हारे तब उसे समझाएं कि कैसे मेहनत करके वो अगली बार जीत सकते हैं।
● अपने बच्चें को एंग्जाइटी से डील करने के लिए ध्यान करवाएं ताकि वो उससे निकल पाए और उसका मन भी शांत रहें और वो अपने पढ़ाई में फोकस कर पाएं।
● समय से अपने बच्चें को सुला दें और हाइजीन बनाए रखें । कई बार एंजाइटी के कारण नींद में बाधा आती है और ये उनके स्वास्थ के लिए बहुत ख़राब है।
● इस बात की जानकारी रखें कि उनके परम मित्र कौन हैं। यदि मित्र अच्छे हैं तो आधे से अधिक समस्या ख़त्म। यदि ख़राब हैं तो सब छोड़ बच्चे के आस पास रहें।
● बच्चों के स्कूल टीचर के भी संपर्क में रहे और उनसे निवेदन करें कि वह आपके बच्चे के एक्टिविटी पर खास ध्यान रखें ।
● किशोर का आत्म संयम बहुत कम होता है और लुभावने भटकाने वाले सपने बहुत ज़्यादा ऐसे में अभिभावकों की ज़िम्मेदारी बहुत अधिक बढ़ जाती है।

किशोरावस्था में तीन तरह की ऊर्जा का होता है निर्माण

बाल्यावस्था और युवावस्था के बीच की कड़ी किशोरावस्था है। इस अवस्था में बच्चों के शरीर में हार्मोनल उत्पत्ति बढ़ जाती है, जिससे उनके शरीर में छिपी शक्तियों का विकास बहुत तेजी से होना आरम्भ हो जाता है। उनके शरीर के अंग तेजी से विकसित होने लगते हैं, जिससे कुछ बच्चे शर्मीले हो जाते हैं। उनके मन में नई दुनियाँ के सपने हिलोरें मारने लगती हैं, ऊर्जा विस्फोट होकर कुछ कर गुजरने की भावना विकसित होने लगती है। यह ऊर्जा सात्विक, राजसिक और तामसिक तीनों प्रवृत्ति में जागृत होती है। यदि ऊर्जा सात्विक दिशा में हो तो बच्चा एक कुशल आविष्कारक, इंजीनियर , डॉक्टर, प्रोफ़ेसर बनता है। राजसिक प्रवृत्ति का हुआ तो मध्यवर्ती अर्थात् एक अच्छा वव्यवसायी या राजनीतिज्ञ बनता है। तामसिक प्रवृत्ति की तरफ रुझान हो तो अपराधी, शराबी, तस्कर आदि बनने का शौक होता है।

बच्चे के किशोरावस्था में मातापिता को मित्रवत व्यवहार करने की आवश्यकता है। शारीरिक परिवर्तन के बारे में चर्चा और सावधानी के बारे में बताना चाहिए। इस अवस्था में यौन विकास प्रमुख है, तो इस बारे में लड़की है तो माता अपनी तरफ से अपना उदाहरण रखते हुए यौवन की जानकारी तथा सावधानी के बारे में बतानी चाहिए। इसी प्रकार पिता भी अपने लड़के के साथ मित्रवत तरीके से जानकारी और सावधान रहने के तरीके बताने चाहिए। इससे बच्चों की जिज्ञासा शांत होगी, शर्म और झिझक दूर होगी तथा ऊर्जा का आवेग सात्विक दिशा प्राप्त कर एक सुनहरे भविष्य का निर्माण करेगी।

दीपक साहू

संपादक

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