यहां मौन रहकर प्रदर्शन करना भी गुनाह है साहब ! – आनंदराम पत्रकारश्री

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छत्तीसगढ़
महासमुंद/स्वराज टुडे: आपके शासन में प्रशासन इतना निरंकुश कैसे? आप तो बहुत ही संवेदनशील हैं। जहां जा रहे हैं, जनता का दर्द दिल से सुन रहे हैं। अपना काम सही ढंग से नहीं करने वालों को सबक भी सिखा रहे हैं। महासमुन्द भी आइये। यहां के अड़ियल प्रशासन तंत्र को नजदीक से महसूस कीजिए। यहां अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करना तो दूर, चुप्पी साधने की भी अनुमति नहीं है ।

महासमुन्द के अतिरिक्त जिला दण्डाधिकारी को लगता है कि एक पीड़ित नागरिक के मौन सत्याग्रह से न्यायालय की अवमानना हो जाएगी। उस कथित याचिका से, जो याचिका मौन धारण करने वाले ने उच्च न्यायालय में लगाई ही नहीं है। वाह रे, अफसरशाही का खेल? यह कैसी लोकतांत्रिक व्यवस्था है? जिसमें पीड़ित व्यक्ति को अपनी मांग शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शित करने मौन सत्याग्रह करने की भी अनुमति नहीं है? गांधी जी की विचारधारा पर चलने वाली पार्टी के शासनकाल में ऐसी अंधेरगर्दी। यहां गांधीजी मुद्रित कागज के टुकड़ों पर ही प्रशासन तंत्र चलेगा ?

अफसरशाही का नमूना देखिए। प्रदेश के एक बड़े अफसर फरमान जारी करते हैं कि रैली, प्रदर्शन, जुलूस के लिए पूर्वानुमति आवश्यक है। इसका नाजायज उपयोग जिले के कुछ अफसर अपनी मनमर्जी चलाने के लिए करते हैं। ‘अंधा बांटे रेवड़ी-फिर फिर अपने को दे’ कहावत को चरितार्थ किया जा रहा है। यहां प्रशासन तंत्र में शून्यता की स्थिति है। वरिष्ठ अधिकारियों के रहते हुए नाकाबिल कनिष्ठ अफसर को एडीएम का प्रभार सौंप दिया गया है। मातहत ही बताते हैं कि मैडम को कानून का ज्ञान तो दूर किसी से बात करने तक की तमीज नहीं है। ऐसे लोग यदि जिम्मेदार लोक सेवक के पद पर रहेंगे, तब सरकार की छवि पर विपरीत प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। राज्य के संवैधानिक प्रमुख राज्यपाल का आदेश भी महासमुन्द जिले में जानबूझकर दरकिनार किया जा रहा है। तब आम आदमी की सुनवाई की उम्मीद करना ही बेमानी है।

मौन सत्याग्रह के 56 घंटे

प्रशासनिक अतिवाद के विरोध में मेरे मौन सत्याग्रह को आज सात दिन पूरे हुए। सत्याग्रह मांगें पूरी होने तक अनवरत जारी रहेगा। दिनचर्या प्रभावित न हो, शांतिपूर्ण आंदोलन को कुचला न जा सके। इसके लिए मैंने श्रमिक दिवस एक मई से ही यह तय कर रखा है कि रोज सुबह 10 से शाम 6 बजे तक मौन सत्याग्रह करूंगा। महासमुन्द जिला प्रशासन ने सार्वजनिक प्रदर्शन की अनुमति अभी तक नहीं दी है। तो निज निवास पर ही सत्याग्रह जारी है। मैंने सत्याग्रह और शांतिपूर्ण प्रदर्शन की अनुमति के लिए दोबारा आवेदन जिला दण्डाधिकारी से की है। उम्मीद है कि जल्द ही अनुमति मिल जाएगी। इस बीच अनेक शुभचिन्तकों के फोन कॉल को रिसीव नहीं कर पाने का मलाल तो है। मौन धारण से अत्याचार को सहने की जो अलौकिक शक्ति मेरे अंतर्मन को मिल रही है, उसका वर्णन मैं शब्दों में नहीं कर पा रहा हूं। प्रतिदिन आठ घंटे तक अपनी वाणी पर संयम रखना, एक बड़ा तपोबल लगता है। अब धीरे -धीरे इसकी आदत सी हो गई है। हमारी प्यारी बिटिया डेढ़ साल की काव्या जब पास आकर बार – बार पुकारती है तब ऐसा लगता है कि अतिवादी प्रशासन तंत्र के विरोध में जारी सत्याग्रह की प्राकृतिक शक्ति परीक्षा ले रही है। अंततः निराश होकर बिटिया लौट जाती है। इस तरह मेरे मौन सत्याग्रह की जीत होती है।

यह है हमारी पांच सूत्रीय मांग

1. माननीय उच्च न्यायालय बिलासपुर के स्थगन आदेश की अवहेलना कर अंबेडकर चौक महासमुन्द स्थित मीडिया हाउस ( प्रेस कार्यालय) को ढहाने वालों के खिलाफ तत्काल एफआईआर और अनुशासनात्मक/दण्डात्मक कार्यवाही हो।

2. लोकतंत्र का चौथा अंग ‘मीडिया’ को स्वतंत्र रूप से काम करने दिया जाए, इसके लिए (श्रीपुर एक्सप्रेस और media24media के) महासमुन्द कार्यालय का व्यवस्थापन कर, तोड़फोड़ से हुई क्षति की भरपाई के लिए समुचित क्षतिपूर्ति राशि दिलाई जाए।

3. लोक निर्माण विभाग ( सेतु निर्माण) महासमुन्द के अनुविभागीय अधिकारी द्वारा निर्माणाधीन तुमगांव रेलवे ओवरब्रिज के इर्द-गिर्द गुमटी/ठेला लगवाकर बड़े पैमाने पर अतिक्रमण कराया जा रहा है। इसकी आड़ में गरीबों (श्रमिकों) से उगाही की जा रही है। समूचे मामले की उच्च स्तरीय जांच हो, ब्रिज के आसपास अतिक्रमण को तत्काल रोका जाए। इसमें संलिप्त दोषियों पर दण्डात्मक कार्यवाही की जाए।

4. छत्तीसगढ़ के राज्यपाल के आदेश की अवज्ञा करते हुए जिला प्रशासन महासमुन्द के अधिकारियों ने नर्रा कांड की दण्डाधिकारी जांच अब तक संस्थित नहीं की है। 8 महीने बाद भी दण्डाधिकारी जांच नहीं कराने, स्वेच्छाचारिता करने वाले जिलाधिकारियों को चिन्हित कर उनके खिलाफ कठोर अनुशासनात्मक/दंडात्मक कार्यवाही कर ग्रामीणों को न्याय दिलाई जाए।

5. छत्तीसगढ़ में कार्यरत सभी पत्रकारों और समाचार पत्र कर्मचारियों को राज्य सरकार माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के परिपालन में मजीठिया वेज बोर्ड अनुरूप वेतन दिलाना सुनिश्चित करें। चुनावी घोषणा पत्र में शामिल पत्रकार सुरक्षा कानून को अविलम्ब लागू करें।

दीपक साहू

संपादक

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