मौत के बाद कमरे में अकेले क्यों नहीं छोड़ा जाता शव? जानिए क्या कहता है गरुड़ पुराण

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मौत एक ऐसा सच जिसे कोई बदल नहीं सकता जन्म से मृत्यु तक का सफर कई बार काफी छोटा भी होता है तो वही कई बार काफी लम्बा भी होता है। लेकिन इसके अलावा भी मौत को लेकर ऐसे कई सच है जिससे इंसानी दुनिया आज भी बेखबर है।
मौत कैसे होगी, कब होगी, कहां होगी ये बात कोई नहीं जानता लेकिन मौत एक न एक दिन आनी है ये तो सत्य है। लेकिन कई लोगो के मन में मौत को लेकर कई सवाल उठते है जिनके बारे में असल में कोई नहीं जनता उन्ही में से एक सवाल है कि आखिर क्यों मौत के बाद शव को अकेला नहीं छोड़ा जाता?

हिंदू धर्म में गरुड़ पुराण का विशेष महत्व है, जो मृत्यु, आत्मा, और मोक्ष के रहस्यों को उजागर करता है। यह पुराण 18 महापुराणों में से एक है, जिसे विशेष रूप से मृत्यु और उससे संबंधित धार्मिक परंपराओं के लिए जाना जाता है। गरुड़ पुराण में जन्म से लेकर मृत्यु और उसके बाद की प्रक्रियाओं का विस्तार से वर्णन किया गया है, जो आत्मा की मुक्ति और मोक्ष की ओर मार्गदर्शन करता है।

मृत्यु के बाद गरुड़ पुराण का महत्व

परिवार में किसी सदस्य की मृत्यु होने पर गरुड़ पुराण का पाठ करने की परंपरा है। यह माना जाता है कि ऐसा करने से मृतक की आत्मा को मोह-माया के बंधनों से मुक्त होने में सहायता मिलती है, और वह इस संसार को छोड़कर अपने अगले गंतव्य की ओर आगे बढ़ पाती है। गरुड़ पुराण में दी गई शिक्षाएं और नियम आत्मा की शांति और परिवार के सदस्यों की मानसिक शांति के लिए आवश्यक माने जाते हैं।

शव को अकेला क्यों नहीं छोड़ा जाता?

गरुड़ पुराण के अनुसार, मृत्यु के बाद शव को अकेला छोड़ना अशुभ और हानिकारक माना जाता है। इसके पीछे कई धार्मिक और व्यावहारिक कारण दिए गए हैं:

बुरी आत्माओं का खतरा:

गरुड़ पुराण में बताया गया है कि रात के समय बुरी आत्माएं सक्रिय हो जाती हैं। यदि शव को अकेला छोड़ा जाता है, तो इन नकारात्मक आत्माओं का उसमें प्रवेश करने का खतरा बढ़ जाता है, जिससे परिवार को परेशानी और संकट का सामना करना पड़ सकता है।

आत्मा का शरीर से जुड़ाव:

गरुड़ पुराण में उल्लेख है कि मृत्यु के बाद आत्मा कुछ समय तक अपने शरीर के पास ही रहती है और उसमें पुनः प्रवेश करने का प्रयास करती है। इसलिए शव को अकेला छोड़ना आत्मा के लिए कठिनाई उत्पन्न कर सकता है और उसकी मुक्ति में बाधा बन सकता है।

तांत्रिक क्रियाओं का डर:

रात के समय तांत्रिक क्रियाओं के सक्रिय होने की मान्यता के अनुसार, यदि शव को अकेला छोड़ा जाता है, तो यह तांत्रिक शक्तियों के द्वारा किसी अनिष्ट की संभावना को जन्म दे सकता है। इसलिए रात के समय शव को अकेला नहीं छोड़ा जाता है।

कीड़े-मकौड़ों का खतरा:

गरुड़ पुराण में यह भी उल्लेख मिलता है कि अगर शव को अकेला छोड़ दिया जाता है, तो उसके आस-पास चींटियों और कीड़े-मकौड़ों का आना संभव है, जिससे शव का अपमान हो सकता है। धार्मिक दृष्टिकोण से भी यह उचित नहीं माना जाता है, इसलिए शव के पास हमेशा कोई न कोई व्यक्ति उपस्थित रहता है।

शव से निकलने वाली गंध:

गरुड़ पुराण के अनुसार, शव से निकलने वाली गंध और उससे उत्पन्न बैक्टीरिया कई प्रकार की बीमारियों का कारण बन सकते हैं। इसलिए शव के पास धूप, अगरबत्ती जलाना और वहां किसी व्यक्ति का बैठे रहना एक महत्वपूर्ण धार्मिक और स्वास्थ्य-संबंधी उपाय है।

गरुड़ पुराण में दिए गए ये नियम और परंपराएं आत्मा की शांति और परिवार की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद किए जाने वाले संस्कार केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं हैं, बल्कि आत्मा की मुक्ति के मार्ग में सहायक होते हैं। शव को अकेला न छोड़ने की परंपरा, आत्मा के शरीर से जुड़े भावनात्मक और धार्मिक संबंधों को सम्मान देती है और मृतक के प्रति श्रद्धा का प्रतीक होती है।

Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियां मान्यताओं और हिन्दू धर्मग्रंथों पर आधारित है । स्वराज टुडे न्यूज इसकी प्रमाणिकता और सत्यता का दावा नहीं करता ।

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दीपक साहू

संपादक

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