उत्तरप्रदेश
प्रतापगढ़/स्वराज टुडे: आज की स्वार्थ परस्त दुनिया में जहां लोग इंसानियत भूलते जा रहे हैं वहीं एक मुर्गे ने इंसानियत की ऐसी मिसाल पेश की है जिसने इंसानों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। उसने बकरी के बच्चे की जान बचाने के लिए अपने प्राणों की कुर्बानी दे दी। मुर्गे की मौत से आहत मालिक ने पूरे रीति रिवाज के साथ उसके शव का कफ़न दफन किया। उसने मुर्गे की तेरहवीं की जिसमें इलाके के सैकड़ों लोग शामिल हुए।
बकरी के बच्चे को बचाने कुत्ते से भीड़ गया मुर्गा
फतनपुर थाना क्षेत्र के बेहदौल कला गांव निवासी डॉ. शालिकराम सरोज अपना क्लीनिक चलाते हैं। घर पर उन्होंने बकरी और एक मुर्गा पाल रखा था। मुर्गे को वे 5 साल पहले लेकर आए थे। मुर्गे से पूरा परिवार इतना प्यार करने लगा कि उसका नाम लाली रख दिया। 8 जुलाई को एक कुत्ते ने डॉ. शालिक राम की बकरी के बच्चे पर हमला कर दिया। यह देख लाली कुत्ते से भिड़ गया। बकरी का बच्चा तो बच गया, लेकिन लाली खुद कुत्ते के हमले में गंभीर रूप से घायल हो गया। 9 जुलाई की शाम लाली ने दम तोड़ दिया। इस घटना से दुखी डॉ शालिक राम ने घर के पास मुर्गे के शव को दफना दिया। इसके बाद सब कुछ सामान्य चल रहा था कि तभी डॉ शालिक राम ने रीति-रिवाज के मुताबिक मुर्गे की तेरहवीं की घोषणा कर दी।
मुर्गे की तेरहवीं में जुटे 500 से ज्यादा लोग
इसे सुनकर लोग हैरान रह गए और पूरे इलाके में मुर्गे की चर्चा होने लगी। इसके बाद डॉ शालिक राम के परिवार में अंतिम संस्कार के कर्मकांड होने लगे। सिर मुंडाने से लेकर अन्य कर्मकांड पूरे किए गए। मंगलवार सुबह से ही हलवाई तेरहवीं का भोजन तैयार करने में जुट गए। शाम से लेकर रात दस बजे तक 500 से अधिक लोगों ने तेरहवीं में पहुंचकर ब्रह्म भोज किया।
परिवार के सदस्य जैसा था लाली
शालिक राम की बेटी अनुजा सरोज ने बताया कि लाली मुर्गा मेरे भाइयों जैसा था। उसकी मौत होने के बाद दो दिनों तक घर में खाना नहीं बना। मातम जैसा माहौल था। हम उसको रक्षाबंधन पर राखी भी बांधते थे। बेहदौल कला गांव के बीडीसी वीरेंद्र प्रताप पाल ने बताया कि जब डॉ शालिकराम ने तेरहवीं के लिए निमंत्रण दिया तो विश्वास नहीं हुआ। लेकिन, 40 हजार रुपये खर्च कर शालिकराम ने कार्यक्रम किया।
इसके बाद लोग मुर्गे के प्रति मालिक का प्रेम देखकर उनकी सराहना कर रहे हैं। शालिकराम ने बताया मुर्गा हमारे परिवार के सदस्य जैसा था। घर की रखवाली करता था। उससे सभी को अटूट प्रेम था। इसकी मौत के बाद आत्मा की शांति के लिए तेरहवीं का कार्यक्रम किया गया।
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