
मध्यप्रदेश
खजुराहो/स्वराज टुडे: भारत एक ऐसा देश है जहां हर कोने में धर्म और संस्कृति की झलक मिलती है। यह भूमि अनेक मंदिरों, धार्मिक मान्यताओं और चमत्कारिक कहानियों से भरी हुई है।
इन्हीं में से एक है मध्यप्रदेश के खजुराहो में स्थित मतंगेश्वर महादेव मंदिर। इस मंदिर के शिवलिंग से जुड़ी मान्यता और विज्ञान के लिए चुनौती बन चुकी इसकी अनोखी विशेषता इसे विश्व प्रसिद्ध बनाती है।
मतंगेश्वर मंदिर के शिवलिंग का रहस्य
इस मंदिर के शिवलिंग के बारे में कहा जाता है कि यह हर वर्ष बढ़ता है। शिवलिंग की ऊंचाई लगभग 2.5 मीटर और इसका व्यास 1.1 मीटर है। यह मान्यता है कि यह शिवलिंग नीचे पाताल लोक की ओर और ऊपर स्वर्गलोक की ओर बढ़ रहा है। जैसे ही यह पाताललोक पहुंचेगा, तब कलयुग का अंत हो जाएगा। हर साल इस मंदिर में शिवलिंग लगभग एक इंच बढ़ता है और इसके पुख्ता सबूत हैं क्योंकि अधिकारियों द्वारा हर साल इसे मापा जाता है।
इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण एक चमत्कारिक मणि के ऊपर कराया गया था। यह मणि स्वयं भगवान शिव ने सम्राट युधिष्ठिर को प्रदान की थी, जिन्होंने इसे मतंग ऋषि को दे दिया था। मतंग ऋषि ने फिर उस मणि को राजा हर्षवर्मन को दे दी। मतंग ऋषि की मणि की वजह से ही इनका नाम मतंगेश्वर महादेव पड़ा। मणि मनोकामना की पूर्ति करती थी और बेहद शक्तिशाली थी, इसलिए सुरक्षा की दृष्टि से इसे जमीन मे गाड़ दी गई थी। कहते हैं कि उसके बाद इसके ऊपर एक शिवलिंग खुद-ब-खुद विकसित होने लगा। तब से यह मणि शिवलिंग के नीचे ही है। इस मणि की प्रचंड शक्ति के कारण ही यह शिवलिंग हर साल एक जीवित मानव की तरह बढ़ता है, जिस कारण इसे जीवित शिवलिंग भी कहा जाता है।
मंदिर का इतिहास और उसकी वास्तु कला की खासियत
मतंगेश्वर महादेव मंदिर, खजुराहो, मध्य प्रदेश में स्थित है, जो कि खजुराहो का सबसे ऊंचा मंदिर माना जाता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण 900-925 ईसवी के बीच हुआ था। यह मंदिर चंदेला राजा चंद्र देव द्वारा निर्मित हुआ था क्योंकि राजा चंद्र देव भगवान शिव के भक्त थे। कहते हैं कि भगवान शिव को यहां ऋषि मतंग के रूप में पूजा जाता है, इसलिए इस शिवलिंग का नाम मतंगेश्वर है। वैसे, इस मंदिर की वास्तुकला खजुराहो के अन्य मंदिरों की तुलना में सादगी भरी है लेकिन यह एकमात्र हिन्दू मंदिर है जो अभी भी पूजा के लिए सक्रिय रूप से उपयोग होता है। इस मंदिर की दीवारों पर कोई भी नक्काशी नहीं है और यह मंदिर बालुआ पत्थर से निर्मित है।
मान्यता यह भी है कि इसी स्थान पर भगवान् शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। इसलिए, महाशिवरात्रि के समय यहां भगवान् शिव के विवाह को धूमधाम से मनाने के लिए तीन दिवसीय समारोह आयोजित किया जाता है। इस समारोह में बड़ी संख्या में लोग भाग लेते हैं।
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