छत्तीसगढ़
कोरबा/स्वराज टुडे: शासकीय इंजीनियर विश्वेश्वर्रय्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय कोरबा में पदस्थ मनोविज्ञान की सहायक प्राध्यापिका डॉ अवंतिका कौशिल ने बाल विवाह (Chlid Marriage) पर किये गए रिसर्च के परिणाम को लेकर चिंता जाहिर की है। उन्होंने कहा कि बाल विवाह निषेध कानून बना देने से ही ये कुप्रथा (Malpractice) नहीं रुकेगी । इसके लिए जनमानस को ही जागरूक होने की आवश्यकता है ।
मुगलों से अपनी बेटियों की अस्मिता को बचाने के लिए बाल विवाह की प्रथा शुरू हुई
भारतीय संविधान के अनुसार 21 वर्ष से कम आयु के लड़के एवं 18 वर्ष से कम आयु की लड़की का विवाह बाल विवाह के अंतर्गत आता है । भारत सहित विश्व के कई राष्ट्रों में बाल विवाह की परंपरा है । भारतीय इतिहासकार बताते हैं कि भारत में मुगलों के आक्रमण और उनके शासनकाल में पुत्रियों के बाल विवाह का प्रचलन बढ़ा था। उद्देश्य यही था कि अपनी पुत्रियों के मान की रक्षा की जा सके जो अंग्रेजों के शासन काल तक अनवरत चलता रहा ।
बाल विवाह रोकने में राजा राममोहन राय एवं केशव चंद्र ने निभाई बहुत महत्वपूर्ण भूमिका
यद्यपि ब्रिटिश शासन काल में राजा राममोहन राय एवं केशव चंद्र ने बाल विवाह की रोकथाम हेतु प्रयासों का शंखनाद किया जिसके परिणाम स्वरूप ब्रिटिश सरकार द्वारा 1954 में सिविल मैरिज एक्ट ( Civil Marriage Act) लाया गया जिसके तहत 14 वर्ष के पूर्व लड़की एवं 18 वर्ष के पूर्व लड़के का विवाह प्रतिबंधित (ban) किया गया । बाल विवाह की रोकथाम की दिशा में यह एक सार्थक प्रयास रहा ।
साल 2006 में बाल विवाह अधिनियम एक्ट किया गया लागू
स्वतंत्र भारत में 2006 में इसमें संशोधन कर इसे बाल विवाह अधिनियम एक्ट में वर्णित किया गया जिसकी सबसे बड़ी ताकत यह रही कि इस एक्ट के तहत बाल विवाह करने वाले माता-पिता, परिजन, पुरोहित के लिए भी दंड का प्रावधान रखा गया । साथ ही बाल विवाह करने वाले युवक-युवती अपने बाल विवाह को शून्य भी घोषित करा सकते हैं ।
सख्त कानून बनाए जाने के बावजूद बाल विवाह नहीं रुकने के कारण
मुगलों एवं ब्रिटिश काल में बेटियां सुरक्षित नहीं समझी जाती थी। उन्हें उत्पीड़न से बचाने हेतु बाल विवाह किए जाते थे । अगर इतिहास ऐसा कहता है तो वर्तमान में बाल विवाह के क्या कारण है । इन कारणों पर दृष्टि डालें तो गरीबी( poverty), अशिक्षा (illiteracy) और दहेज (Dowry) असली वजह हैं जो आज भी इस प्रथा को जीवित रखे हुए हैं। दूसरी ओर महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा बाल विवाह की सूचना मिलने पर परिजनों को समझाइश देकर बाल विवाह को तो रोका दिया जाता है लेकिन अधिनियम के तहत कार्रवाई नहीं की जाती जबकि इसमें सख्त सजा का प्रावधान है ।
बाल विवाह का अक्षय तृतीया से गहरा नाता
बाल विवाह करने वाले माता-पिता अपने इस कार्य को धार्मिक जामा पहनाने हेतु अक्षय तृतीया जो दान कर्म का प्रतीक दिवस मानकर उसका सहारा लेते हैं । कन्या को दान की वस्तु समझकर उसे अक्षय तृतीया के दिन बाल विवाह के रूप में दान कर अक्षय सौभाग्य प्राप्त करना चाहते हैं जबकि बाल विवाह के परिणाम स्वरूप बच्चे जिन्हें जबरन विवाह के बंधन में बांधा जाता है उनकी शिक्षा में अवरोध होता है । उनके व्यक्तित्व का विकास अवरुद्ध हो जाता है । अल्पायु वाली बच्चियां कुपोषण का शिकार हो जाती हैं। मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में बढ़ोतरी होती है । अविकसित बच्चे जन्म लेते हैं।
जानिए क्या कहती है NCRB की रिपोर्ट
एनसीआरबी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ( National Crime Record Bureau) के जारी आंकड़ों के अनुसार साल 2020 में बाल विवाह के मामलों में पिछले साल के मुकाबले करीब 50 फ़ीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है । यद्यपि एनसीआरबी 2020 के आंकड़ों के मुताबिक बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत कुल 785 मामले दर्ज किए गए हैं । विवाह समाज के विकास हेतु आवश्यक वह आधारशील बुनियाद है जो एक स्वस्थ समाज की नींव रखती है। परिवार रूपी गाड़ी को चलाने हेतु पति पत्नी के बीच मानसिक परिपक्वता आवश्यक है । बाल विवाह के रूप में हम गाड़ी को चलाने हेतु दो अपरिपक्व व्यक्तियों का मेल करा देते हैं । यह स्वास्थ्य, समझदारी जिम्मेदारी को नहीं समझ पाते । लिहाजा हम एक स्वस्थ समाज का निर्माण कर पाने में असमर्थ रहते हैं ।
बाल विवाह के लिए दंड का प्रावधान क्या है ?
- 18 वर्ष से अधिक उम्र का व्यक्ति अगर 18 वर्ष से कम उम्र की किसी बालिका से विवाह करता है, तो ऐसे अपराध करने वाले व्यक्ति को कानून द्वारा दण्डित किया जायेगा जो कि 2 साल की कठोर कारावास या 1 लाख रुपया जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जायेगा।
- बाल विवाह करवाने वाले व्यक्ति या ऐसे विवाह को करवाने में मदद करने वाले ,इन दोषियों को भी जो कि 2 साल की कारावास की सजा और 1लाख रुपये तक का जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जायेगा।
- अगर कोई व्यक्ति बाल विवाह को बढ़ावा देता है, बाल विवाह की अनुमति देता है या बाल विवाह में शामिल होता है तो ऐसे व्यक्ति को 2 साल तक की कारावास की सजा या 1 लाख रुपये तक का जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जायेगा।
इस कुप्रथा को रोकने के लिए हर नागरिक को समझना होगा अपना उत्तरदायित्व
सरकार के कानून कठोरता से उनका क्रियान्वयन एक बेहतर समाज का आधार स्तंभ तभी बनेंगे जब उस समाज के नागरिक भी अपना उत्तरदायित्व समझकर समाज में फैली इस कुप्रथा के खिलाफ एकजुट होंगे। समाज के लोगों को जागरूक करेंगे । एक शिक्षक अपने अपने छात्रों के बीच यह जागरूकता फैलाएंगे। सामाजिक समूह अपने समूह के लोगों के बीच इस कुप्रथा के विरुद्ध आवाज उठाएं तो ऐसी सामाजिक समस्याएं समाप्त हो जाएंगी ।
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