देश के पहले ही चुनाव में दूध बेचने वाले से हार गए थे संविधान निर्माता अंबेडकर, सदमे में हो गई थी मौत; जानें क्या हुआ था खेला

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भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में चुनाव के दौरान धांधली की बात कोई नई नहीं है. देश के पहले ही आम चुनाव में जीत और हार का फैसला धांधली से होने का दाग लगा. यह दाग किसी और ने नहीं, बल्कि संविधान के रचयिता बाबा साहेब डॉ. भीम राव अंबेडकर ने लगाया था.

इस चुनाव में वह उत्तर बंबई से चुनाव लड़े थे और महज 14 हजार वोटों से हार गए थे. बड़ी बात यह कि उन्हें कांग्रेस के टिकट पर एक दूध बेचने वाले व्यक्ति नारायण कजरोलकर ने हराया था.

इस चुनाव में अंबेडकर का विरोध कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख श्रीपद अमृत दांगे तो कर ही रहे थे, खुद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु भी अंबेडकर के खिलाफ चुनाव प्रचार करने दो बार बंबई पहुंचे. बावजूद इसके, अंबेडकर के आगे कांग्रेस प्रत्याशी नारायण कजरोलकर बढ़त हासिल नहीं कर सके. आखिरकार मतदान की तिथि आई और जमकर वोटिंग हुई. इस समय तक अंबेडकर अपनी जीत को लेकर अश्वस्त थे, लेकिन मतगणना शुरू हुई तो उन्हें बताया गया कि उनकी लोकसभा सीट पर 78 हजार वोट अवैध पाए गए हैं.

14 हजार वोटों से हार गए थे अंबेडकर

वहीं मतगणना पूरी होने के बाद सूचना दी गई कि वह 14 हजार वोटों से यह चुनाव हार चुके हैं. इस चुनाव का विस्तार से वर्णन पद्मभूषण से सम्मानित प्रसिद्ध लेखक धनंजय कीर ने अपनी किताब ‘डॉक्टर बाबासाहेब अंबेडकर – जीवन-चरित’ में किया है. इस किताब में उन्होंने लिखा है कि अपनी हार से अंबेडकर हैरान थे. उन्होंने चुनाव आयोग से इसकी जांच कराने का आग्रह किया था. उन्होंने इस हार के लिए कम्युनिस्ट नेता श्रीपद अमृत दांगे के षड़यंत्रों को जिम्मेदार बताया था.

धांधली का आरोप लगाकर गए थे कोर्ट

अंबेडकर की हार की जानकारी होने पर समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण ने भी चुनाव प्रक्रिया पर हैरानी जाहिर की थी. वह लिखते हैं कि चुनाव आयोग ने अंबेडकर के आग्रह पर कोई एक्शन नहीं लिया तो वह कोर्ट भी गए. उन्होंने बंबई की कोर्ट में दाखिल अपनी याचिका में आरोप लगाया कि उन्हें जानबूझ कर हराया गया है. इस चुनाव में हार के बाद डॉ. अंबेडकर बीमार रहने लगे थे. उनकी पत्नी सावित्री बाई अंबेडकर ने अपने पति के करीबी मित्र कमलकांत चित्रे को भेजे पत्र में इसका उल्लेख किया है.

उपचुनाव में भी हुई थी अंबेडकर की हार

इसमें उन्होंने लिखा है कि डॉ. अंबेडकर की यह बीमारी शारीरिक नहीं, बल्कि चुनाव में हार के बाद मानसिक है. वह अपनी जीत को लेकर आश्वस्त थे. यहां तक कि उन्होंने पहले से ही लिस्ट तैयार कर लिया था कि संसद पहुंचने के बाद उन्हें कौन कौन से काम प्राथमिकता से करने हैं. इस चिट्ठी को भी लेखक धनंजय कीर ने अपनी किताब में हूबहू स्थान दिया है. 1952 चुनाव में डॉ. अंबेडकर बंबई उत्तरी सीट से हार गए तो कुछ दिन बैठ गए, लेकिन दो साल बाद यानी 1954 में महाराष्ट्र के भंडारा लोकसभा सीट पर उपचुनाव कराने की जरूरत पड़ी.

बीमारी में हो गया अंबेडकर का निधन

उस समय डॉ. अंबेडकर ने भी अपना नामांकन दाखिल किया. खूब मजबूती से चुनाव भी लड़े, लेकिन महज 8 हजार वोटों से इस चुनाव में भी हार गए. आजाद भारत में लगातार दो बार हार कर संविधान के रचयिता बाबा साहेब डॉ भीम राव अंबेडकर बुरी तरह से टूट चुके थे. उन्हें गहरा सदमा लगा था और इसकी वजह से वह काफी बीमार पड़ गए. फिर इसी बीमारी की वजह से उनका 6 दिसंबर 1956 को निधन हो गया था.

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दीपक साहू

संपादक

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