गंभीर अपराधों में नाबालिगों की बढ़ती संलिप्तता समाज व राष्ट्र के लिए खतरे की घंटी- डॉ सुषमा पांडेय

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बाल अपराध

जब कोई बालक समाज विरोधी, परिवार विरोधी या कानून विरोधी कार्य करता है तो इसे बाल अपराध की श्रेणी में रखा जाता है और बाल अपराधी के अंतर्गत  सामान्यतः  8 वर्ष से 16 वर्ष की आयु तक के बालक या बालिका  आते हैं।

गंभीर अपराधों में बढ़ रही है नाबालिगों की संलिप्तता

भारतीय समाज में नाबालिगों की अपराधों में संलिप्तता दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। साथ ही अपराध के प्रति मानसिकता भी इतनी जटिल होती जा रही है जो विचार से परे हैं। नाबालिग अपराध का प्रमुख कारण नगरीकरण और औद्योगीकरण है , परंतु आज सबसे महत्वपूर्ण कारण समाज का डिजिटल करण होना है। आज छोटे-छोटे बच्चों के अंदर प्रतिस्पर्धा , हार जीत और अहम की भावनाओं का विकास उस समय से विकसित होने लगता है जिस समय बच्चों को अबोध कहा जाता था।

पारिवारिक नियंत्रण से ज्यादा व्यक्तिगत स्वतंत्रता ज्यादा मायने रखती है । अभिभावकों की दंभी चाह भी नाबालिगों को अपराध की ओर अग्रसर करती है। गाली एवं नशे की संस्कृति किशोरों को हिरोपंती की राह का दिवास्वप्न बनता जा रहा है। नाबालिक स्वयं को सिद्ध करने की चाह में अपराध की ओर अपनी नई भूमिका तय करते जा रहे हैं।।

नाबालिगों में आपराधिक प्रवृत्ति के मुख्य कारण

पारिवारिक कारण ,अनुवांशिकी, अपराधी रिश्तेदार, परिवार द्वारा तिरस्कार, आर्थिक दशाएं ,शारीरिक कारक, मनोवैज्ञानिक कारण, सामुदायिक कारक, सिनेमा, मोबाइल , इंटरनेट,  अश्लील साहित्य अपराधी क्षेत्र इत्यादि प्रमुख कारक है जो नाबालिगों को अपराध के लिए उकसाते हैं। बाल अपराध पर अंकुश लगाने के लिए इनमें से उचित कारणों का पता लगाकर उस समस्या का समाधान निकालना चाहिए ।

नाबालिक अपराध की समस्याओं का समाधान

*पारिवारिक एवं सामाजिक सहायता
*कानूनी सहायता बाल न्यायालय
*एनजीओ एवं सुधारात्मक संस्थाएं

समाज एवं परिवार कानून अपनी जवाबदेही को सकारात्मक रूप से समझे तो नाबालिग को अपराध के प्रति संलिप्तता को कम किया जा सकता है । परिवार बच्चों को अपने सपने पूरा करने का साधन ना मानना, लचीलापन व्यवहार अपनाकर, बच्चों को उचित अनुचित का भेद समझाकर, बच्चों को पारिवारिक दायित्वों में सम्मिलित करके उसके महत्व को बताकर एवं जीवन अनमोल है ये आत्म प्रेम का विकास बच्चों के अंदर जागृत करके उन्हें अपराधिक गतिविधियों से दूर रखा जा सकता है।

बच्चों को समाज का भय ना बता कर समाज की भूमिका मानव जीवन में समझाना और समाज के लोगों के द्वारा ऐसे बच्चे जो किसी अपराध में लिप्त थे उन बच्चों के लिए कानूनी सहायता एवं सहायता केंद्र स्थापित करना जिससे वे बच्चे किसी अपराधिक व्यक्ति के साथ शामिल ना हो सके वे सुरक्षित रहे।

किशोर न्याय अधिनियम के तहत प्रत्येक जिलों में बाल कल्याण समिति का गठन किया गया है जहां नाबालिग बच्चों के प्रकरण को गंभीरता से लेते हुए सामाजिक पारिवारिक सहायता देकर बच्चों  की काउंसिलिंग की जाती है । बाल संप्रेषण गृह में निरुद्ध अपचारी बालक बालिकाओं की नियमित रूप से काउंसलिंग कर उन्हें उनके सामाजिक दायित्वों का अहसास कराना चाहिए।

माता-पिता की भूमिका

अगर माता पिता अपने नाबालिग बच्चों का अपने अनुभव एवं ज्ञान से पथ प्रदर्शन करें तो नाबालिगों की अपराध में संलिप्तता को रोका जा सकता हैं और काफी हद तक बाल अपराध से नाबालिगों को बचाया जा सकता है। बच्चों की ज्ञानवर्धक किताबें पढ़ने को दें । महापुरुषों के जीवन चरित्र की कहानियां सुनाएं।  अगर नाबालिग बच्चों की संगति अच्छी ना हो और उनकी गतिविधियां संदिग्ध नजर आने लगे तो तत्काल काउंसलर की मदद लेनी चाहिए ।

डॉ सुषमा पांडेय
फैमिली काउंसलर

दीपक साहू

संपादक

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