छत्तीसगढ़
कोरबा-कटघोरा(स्वराज टुडे): कटघोरा वनमंडल की अगर बात करे तो यह विभाग वन्यप्राणियों की सुरक्षा व जंगल को संरक्षित करने के नाम पर सालाना लाखो करोड़ो रु खर्च कर देता है,इसके बावजूद न तो जंगल सुरक्षित रह पा रहे हैं और न ही वन्यप्राणी अपने आप को महफूज बया कर पा रहे हैं।वही दूसरी तरफ अगर इस विभाग की बात करे तो यहां “दिया तले अंधेरा” जैसी स्थिति बनी नजर आती है।कहने का तात्पर्य यह है इस विभाग के पास हाथियों व अन्य प्राणियों से ग्रामीणों को सुरक्षित करने के लिए नाम मात्र के उपकरण भी नही है शायद विभाग के आला अधिकारियों को ग्रामीणों से कोई सरोकार नही जो निर्माण कार्य मे लाखों करोड़ों का बजट और ग्रामीणों की सुरक्षा को लेकर विभाग के पास एक टार्च तक नही?
वैसे तो कटघोरा वनमंडल की अनेकों गाथाएं है जिन्हें शायद भूला पाना आसान नही होगा,फिर चाहे वो स्टॉप डेम का मामला हो या फिर मानगुरु में पेड़ कटाई का,,हर बार कटघोरा वनमंडल कुछ न कुछ कारनामो को लेकर सुर्खियों में बना रहता है।यह विभाग सुर्खियों के फेर में ग्रामीण इलाको के लोगो को वन्यप्राणियों से सुरक्षा मुहैया करा पाना शायद भूल गया है,जो आएदिन वनांचल इलाकों में ग्रामीण हाथियों के हमले से मारे जा रहे हैं,बाबजूद कटघोरा वनमंडल के कानों पर जु तक नही रेंग रही है।वैसे तो यह विभाग ग्रामीणों की सुरक्षा को लेकर बड़ी बड़ी बातें करता है, हुल्लड़ पार्टी का इंतजाम करता है पर मृत्यु दर में कोई खास कमी नही आ पा रही है।वन्यप्राणी अब रहवासी इलाको की ओर कुच कर भारी तबाही का आलम बिखेरने को लालायित है, वही वन विभाग के आला अधिकारी मूकदर्शक बनकर तमाशबीन है जो ग्रामीणों की मौत हो जाने पर उन्हें मुआवजा का मरहम लगाकर अपनी पीठ थपथपा लेते हैं।
अब यह विभाग की नाकामी है या अधिकारियों की घोटालेबाजी,,यह बता पाना तो मुश्किल होगा,लेकिन इतना जरूर है कि विभाग के कारगुजारियों की लापरवाही से बेसुध ग्रामीण अपनी जान गवाने को मजबूर हो जाते हैं।मजे की बात तो यह है कि अगर रात के दौरान वन्यप्राणी रहवासी इलाको के करीब आ जाए तो उन पर नजर रखने के लिए विभाग के पास उचित इंतजाम तो दूर एक टार्च तक नही है।अब ऐसे में विभाग ग्रामीणों को कितना सुरक्षा प्रदान कर सकता है यह सहज ही समझा जा सकता है।
विभाग के द्वारा विभिन्न इलाकों में शिविर लगाकर वन्यप्राणियों से सुरक्षित रहने व उनसे बचाव के उपाय बताए गए हैं जिनके आधार पर हाथी प्रभावित इलाको के ग्रामीण कुछ हद तक जागरूक हो गए है जो स्वयं अपनी व अपने परिवार की हिफाजत करने वन्यप्राणियों से सामना करते हैं।अगर विभाग के भरोशे रहे तो शायद दिया तले अंधेरा जैसी कहानी रहेगी जहां वन्यप्राणियों से सुरक्षा की तो कोई गारंटी तो नही है? पर मुआवजा देकर विभाग जरूर अपने कर्तव्यों से इतिश्री कर लेगा।
कटघोरा वनमंडल भी किसी अजूबे से कम नही है जो यहां के आला अधिकारी विभाग के नियम कायदों को सूली पर टांगने से जरा भी नही कतराते हैं।यहाँ विभाग के नियम के नियम कायदे उन रसूखदारों के आगे फीके पड़ जाते हैं जो अपने आप को शूरमा भोपाली बता कर गैरकानूनी कार्यो को सरेआम अंजाम दे देते हैं और विभाग के आला अधिकारी उन पर जांच कार्यवाही करने के बजाय उनकी चमचा गिरी करने में लगा है ऐसा हम नही कह रहे ये तो गलियारों की चर्चा है जो यहां आसीन अधिकारियों की गाथा रोजाना नए अंदाज में चरितार्थ होती रहती है।
*अरविंद शर्मा की रिपोर्ट*
Editor in Chief