हर माता-पिता अपने बच्चों को हर तरह से सुरक्षित महसूस कराने हेतु उनकी समुचित देखभाल हेतु उनके साथ ही सोते हैं लेकिन कई बार यह पेरेन्टस और बच्चों दोनों के लिए काफी नुकसानदायक हो सकता है।
किस उम्र में पेरेंट्स को बच्चों के साथ सोना बंद कर देना चाहिए
एक स्टेज के बाद जरूरी है कि माता-पिता बच्चों के साथ बेड शेयर न करें। अगर करते हैं तो इससे क्या नुकसान हो सकता है? चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट एलिजाबेथ मैथिस कहती हैं कि जिन बच्चों के माता पिता अलग रहते हो उनके पेरेंट्स का अपने बच्चों के साथ बेड शेयर करना अच्छा है क्योंकि ऐसे बच्चे अपने पेरेन्ट्स के साथ अपने आप को काफी सुरक्षित महसूस करते हैं।
एकल परिवार से नैतिक मूल्यों का हुआ पतन
भारतीय संस्कृति में पुरातन काल से संयुक्त परिवार की परंपरा रही है। ऐसे में बच्चे ज्यादातर अपने-दादा-दादी के पास ही सोते थे और सोने के पूर्व अवश्य ही कोई-न कोई नैतिकमूल्यों से ओतप्रोत कहानी या वीर रस से पूर्ण लोरी सुनकर ही सोते थे। इस प्रकार हमारी भावी पीढ़ी नैतिक मूल्यों और वीरगाथाओं से अभिमंत्रित रहती थी। गुलामी की दासता और पाश्चात् सभ्यता के अनुकरण में संयुक्त परिवार बिखरा तो घर दादा-दादी के बिना सूना हो गया। एक संतान का चलन शुरू हुआ तो घर में संतान भी एक ही रह गयी। नवीन जीवन शैली फ्लैट संस्कृति में एकलौती संतान नौकरीपेशा माता-पिता द्वारा पाली पोषी जाती है। आधुनिक जीवन शैली में माता-पिता और संतान के कमरे अलग- अलग हो गए हैं।
किस उम्र से बच्चों को अलग कमरे में सुलाना चाहिए ?
बाल मनोवैज्ञानिकों ने इसकी कोई निश्चित उम्र निर्धारित नहीं की है। जैसे ही माता-पिता महसूस करें कि उनके बच्चे में आत्मरक्षा, आत्मविश्वास का गुण विकसित हो गया है। वे उसे दूसरे कमरे में सुला सकते हैं। यदि माता-पिता संतान की उम्र अधिक होने पर भी उनमें इन गुणों की कमी देखते हैं तो बच्चे को उनके कमरे में सुला कर आ सकते हैं जिससे उनका भय धीरे- धीरे दूर होगा।
यौवनावस्था के प्रारंभ में बच्चों के मन में उठते हैं अनेक सवाल
न्यूयॉर्क की बाल चिकित्सक डॉ.रेबेका फिस्क का कहना है कि किस उम्र के बच्चों को माता-पिता से अलग सुलाया जाए इसका कोई मेडिकल नियम नही है। यह माता-पिता का, बच्चे का अपना निर्णय है । फिर भी प्री-प्यूबर्टी (यौवनावस्था) के दौरान ये बच्चे अपने माता-पिता के साथ सोना पसंद नहीं करते क्योंकि इस दौरान स्त्री एवं पुरुष हार्मोन्स के गुण इनमें विकसित होते हैं। शरीर में शारीरिक परिवर्तन होते हैं। तथापि यदि युवा बच्चे अपनी सामाजिक, शैक्षिक, अथवा शारीरिक परेशानियों की वजह से अपने माता-पिता के पास सोना चाहते हैं तो उनकी बात धैर्यपूर्वक सुनने और उसके समाधान का यह सबसे उपयुक्त समय होता है।
माता पिता का स्नेहिल स्पर्श बच्चों का बढ़ाता है आत्मविश्वास
शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय कोरबा में पदस्थ मनोविज्ञान की सहायक प्राध्यापिका डॉ अवंतिका कौशिल कहती हैं कि माता-पिता का स्नेहिल स्पर्श / अलिंगन बच्चों को समाज के तानों को झेलने की ताकत देता है। उनकी हताशा-निराशा को दूर करता है। वर्तमान समय में पिछले दो वर्षों की वैश्विक महामारी में हमारी युवापीढ़ी को ‘ मोबाइल’ का गुलाम बना दिया है। आधी रात तक वो आजकल ऑनलाइन व्यस्त रहते हैं ऐसे युवाओं को भी माता-पिता अपने पास बारी-बारी से सुलाकर उनकी ये लत छुड़ा सकते हैं।
संतान छोटी हो या बड़ी माता-पिता के लिए सदा दुलारी होती है। माता पिता छोटी संतान को इस डर से अलग नही सुलाना चाहते कि वे असुरक्षित महसूस करेंगे और बड़ी संतान को समाज के डर से । इस प्रकार के पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर माता-पिता को अपने संतान की आवश्यकताओं को सर्वोपरि रखना चाहिए।
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